इस दिन शुरू हुआ था भारत छोड़ो आंदोलन, जानिए रोचक तथ्य
15 अगस्त 2024 : भारत को 15 अगस्त 1947 को आज़ादी मिली थी, लेकिन यह आज़ादी किसी जादू की छड़ी से नहीं मिली थी। इस आज़ादी के लिए भारत को कई सालों तक संघर्ष करना पड़ा था। इन्हीं संघर्षों में से एक था ‘भारत छोड़ो आंदोलन’, जिसने ब्रिटिश हुकूमत की नींव हिला दी थी।
9 अगस्त 1942 को महात्मा गांधी के नेतृत्व में शुरू हुआ यह आंदोलन अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिए एक मजबूत आवाज थी। महात्मा गांधी ने 9 अगस्त 1942 को बंबई में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अधिवेशन में इस आंदोलन की शुरुआत की थी।
- 9 अगस्त की सुबह-सुबह अंग्रेजों ने ‘ऑपरेशन जीरो ऑवर’ के तहत कांग्रेस के सभी बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर लिया था। महात्मा गांधी को पुणे के आगा खान पैलेस में नजरबंद कर दिया गया और अन्य कांग्रेस कार्यकर्ताओं को अहमदनगर के किले में कैद करके रखा गया।
- अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह के स्वर तेज हो गए थे। भयभीत ब्रिटिश सरकार ने सभी तरह के जुलूसों पर प्रतिबंध लगा दिया। कांग्रेस को ही एक अवैध संस्था घोषित कर दिया गया। साथ ही, देश भर में हुए नुकसान के लिए गांधीजी को जिम्मेदार ठहराया गया।
- अंग्रेजों ने गांधीजी और अन्य बड़े आंदोलनकारियों को गिरफ्तार कर लिया था, लेकिन अंग्रेजों के खिलाफ गुस्सा और भारत की आजादी की जिद भारी पड़ गई। चाहूर आंदोलन की तीव्रता तेजी से बढ़ रही थी। ब्रिटिश सरकार यह देखकर हैरान थी कि बिना किसी बड़े नेता के यह आंदोलन कैसे चल रहा था।
- आंदोलन को रोकना ब्रिटिश सरकार के हाथ से बाहर था. इसके बाद उन्होंने लाठी और बंदूकों के बल पर भीड़ को रोकने की कोशिश की. लेकिन अंग्रेजों के खिलाफ गुस्सा बढ़ता ही जा रहा था. गुस्सा इतना था कि कोई कुछ नहीं कर सकता था. क्योंकि कार्यकारिणी के सभी सदस्य भी जेल में नजरबंद थे.
- गोवालिया टैंक मैदान से अपने भाषण के दौरान गांधीजी ने कहा था, ‘मैं आपको एक मंत्र देना चाहता हूं जिसे आप अपने दिल में उतार लें, यह मंत्र है करो या मरो.’ उस समय गांधीजी ने करीब 70 मिनट का भाषण दिया था.
- नेताओं की गिरफ्तारी के बाद आंदोलन की बागडोर आम लोगों के हाथ में आ गई. यह आंदोलन अहिंसक था लेकिन एक अलग मुकाम पर पहुंच चुका था. आंदोलनकारियों ने अंग्रेजों के खिलाफ हिंसा का सहारा लिया. इस दौरान करीब 250 रेलवे स्टेशन, 150 पुलिस स्टेशन और करीब 500 डाकघरों में आग लगा दी गई.
- ब्रिटिश सरकार के आंकड़ों के मुताबिक 940 लोग मारे गए और 1630 लोग घायल हुए. साल के अंत तक 60,229 लोगों ने अपनी गिरफ़्तारी दे दी थी. लेकिन कांग्रेस के अनुसार, लगभग 10 हज़ार लोगों की जान चली गई थी.
- नेताओं की गिरफ़्तारी के बाद भी आंदोलन अपने चरम पर था. अहिंसक और हिंसक दोनों तरह के आंदोलन थे. ब्रिटिश सरकार के ख़िलाफ़ भारत छोड़ो आंदोलन की ज्वाला किसी भी तरह से बुझती नहीं दिख रही थी. भारतीयों के गुस्से और एकता को देखकर ब्रिटिश सरकार को यकीन हो गया था कि अब उन्हें यह देश छोड़ना ही होगा. साथ ही, ब्रिटिश सरकार की ओर से संकेत मिल रहे थे कि जल्द ही वह सत्ता भारतीयों के हाथ में सौंप दी जाएगी. सबसे बड़े आंदोलन की ज्वाला ने 1943 तक भारत को एकजुट कर दिया था.
- 1947 में लॉर्ड माउंटबेटन को भारत का वायसराय नियुक्त किया गया। उनसे पहले लॉर्ड वेवेल वायसराय थे। इसके बाद संघर्ष जारी रहा और 15 अगस्त 1947 को भारत स्वतंत्र हो गया। और देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने झंडा फहराया।
- देश को आजाद कराने में गांधीजी ने अहम भूमिका निभाई। लेकिन 14 अगस्त 1947 की शाम को आजादी का जश्न मनाया जा रहा था। तब पं. जवाहरलाल नेहरू भाषण दे रहे थे लेकिन गांधीजी आजादी के जश्न में मौजूद नहीं थे। क्योंकि उन दिनों बंगाल के नोआखली में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच सांप्रदायिक हिंसा चल रही थी। और उन्होंने कसम खाई थी कि जब तक मामला सुलझ नहीं जाता तब तक वे भूख हड़ताल पर रहेंगे।